सूची प्यारी रखना: 29 नियम
बिश्नोई समाज के 29 नियमों में छठा नियम (सूची प्यारी रखना) भावार्थ सहित
सूची प्यारी रखना: बाह्य तथा आभ्यान्तर अर्थात् शरीर की शुद्धता तथा मन बुद्धि की शुद्धता से प्रेम रखना चाहिये। सदा ही अपना ध्यान इस और बना रहे तथा शुद्धता के लिए प्रयत्नशील रहें। शरीर की शुद्धि तो मिट्टी जल से होती है और मनबुद्धि की शुद्धि अच्छे विचारों से, भगवान के भजन करने से तथा सत्य बोलने आदि से होती है। इस प्रकार की शुद्धता के लिए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिये।
शब्दवाणी में भी कहा है-
तन मन धोइये संजम होइये हरख न खोइये।
दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि पवित्र प्रेम एक दूसरे के प्रति सदा बनाये रखें। क्योंकि आपस के पवित्र प्रेमाभाव से ही दुनिया का सम्पूर्ण व्यवहार सुचारू रूप से चल पाता है। जहां पर प्रेमभाव में स्वार्थ आ जाता है वहां पर प्रेम में पवित्रता नहीं रह पाती, वहां तो मोह हो जाता है। मोह तो सदा दुःखदायी तथा स्वार्थ से भरा रहता है किन्तु प्रेमभाव सदा ही निर्मोही तथा परमार्थी होता है। प्रेम भाव से सेवा,सहायता करने में अनुपम सुख मिल पाता है, संसार का व्यवहार ठीक से चलता है।
सभी मानव सामान्य रूप से जीवन व्यतीत करते हुए क्षमा, दया, दाक्षिण्यादि गुणों को धारण कर लेते हैं। इसी नियम द्वारा सृष्टि के सभी छोटे-बड़े प्राणियों से निष्काम भाव से परम पवित्र प्रेम करना सीखा जा सकता है, इसी से ही जीओ और जीने दो का सिद्धांत कायम हो सकता है। तथा कण-कण में प्रभु परमात्मा की ही ज्योति छटा बिखर रही है सभी जीवमात्र उसी परमात्मा की ही सन्तान हैं। हम भी वहीं है जो ये हैं। ऐसा शुद्ध ब्रह्ममय सिद्धांत कायम होता है। इसीलिए अपने पराये का भेदभाव भुलाकर सभी के प्रति प्रेमभाव रखना चाहिये।
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