29 नियम: सांझ आरती करना

जांभोजी के 29 नियम : आठवां नियम (सांझ आरती) व्याख्या सहित


 29 नियम: सांझ आरती करना

सांझ आरती करना : संध्या पूर्ण हो जाने के पश्चात रात्रि का समय हो जाता है। उस समय में भी व्यर्थ की निंदा या आलबाल की बातों में समय नष्ट न करो। जैसी तुम वार्ता करोगे या सुनोगे, वैसा ही संस्कार तुम्हारे अन्दर आयेगा। उसी संस्कार से ही आप अपना जीवन व्यतीत कर सकोगे।
 अच्छे संस्कारों के लिए तथा परमात्मा की अनुकम्पा के लिए रात्रि में सभी परिवार के लोग मिलकर बैठो और आरती करो अर्थात् आर्तभाव से समर्पण भाव से प्रभु परमात्मा की पुकार करो।‌ परमात्मा के गुणों का ही बखान करो यानी सत्संग चर्चा ही करो। जिससे तुम्हारे संस्कार पवित्र बनेंगे उससे जीवन में खुशहाली आयेगी। यह भी एक नियम है, नियम कोतोड़ना नहीं चाहिये।
एक बार यदि टूट गया तो फिर दुबारा जुड़ना कठिन हो जाता है। फिर नियमाभाव में जीवन उदण्ड हो जाता है जिससे समाज में अव्यवस्था फैलती है। इन्हीं मर्यादाओं  में बांधने के लिए ये नियम बतलाये हैं।
सांयकाल में आरती बोलने के लिए प्रथम तो स्वयं याद करो, बाद में सस्वर प्रेमभाव से गाओगे तो अन्य लोग भी आपकी तरफ आकर्षित होंगे, इससे उनका भी जीवन सफल हो सकेगा। इसीलिए गुण एक लाभ अनेक होंगे। यही सांझ आरती गुणगान का महत्व है।





साभार: जम्भसागर
लेखक: आचार्य कृष्णानन्द जी
प्रकाशक: जाम्भाणी साहित्य अकादमी 


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