प्रातः काल हवन करना : बिश्नोई पंथ के 29 नियम
बिश्नोई समाज के नियम : नौवां नियम (प्रातः काल हवन करना) भावार्थ सहित
प्रातः काल हवन करना : सभी के हित के लिए सचेत होकर तथा प्रेमभाव से हवन करो तो मुक्ति पद को अवश्य ही प्राप्त कर लोगे। केवल हवन करना ही पर्याप्त नहीं है, हवन करने के साथ-साथ हित-चित और प्रीत की भावना भी जुड़ी हुई होनी चाहिये।
ऐसी पवित्र भावना द्वारा किया गया कर्तव्य कर्म कभी भी बंधन में डालने वाला नहीं होगा। यज्ञ के अवसरपर हम घृतादिक आहुति अग्निदेवता को समर्पित करते हैं। वह स्वाहा द्वारा दी गयी आहुति से सभी देवता तृप्त होते हैं तथा विष्णु परमात्मा तक वह आहुति पंहुचती है तो सम्पूर्ण विश्व ही तृप्त हो जाता है।
उस आहुति के बदले में हम उनसे कुछ भी नहीं चाहते तो भी देवताओं की प्रसन्नता का अर्थ है वे कुछ न कुछ अवश्य ही प्रदान करेंगे। यदि ये सूर्य, चन्द्र, वायु, जल, आकाश, पृथ्वी आदि प्रसन्न हो जाते हैं तो यहां मृत्युलोक के सभी प्राणी दैविक, दैविक भौतिक तापों से छुटकारा पा जाते हैं। देवता हमें दिन रात अजस्त्र प्रवाह से देते ही रहते हैं। हम उनके लिए क्या दे सकते हैं उनके ऋण से उऋण होने का उपाय मात्र यज्ञ ही हो सकता है। इसीलिये यज्ञकरने में सभी का कल्याण निहित होता है।
वेदों में कहा है कि ‘स्वर्गकामोयजते ’ स्वर्ग सुख की कामना वालायज्ञ करें तथा प्राचीनकाल से ही हिन्दू बड़े-बड़े यज्ञ करते भी आये हैं किन्तु उस समय से अद्यपर्यन्त यज्ञ करने का एकाधिकार ब्राह्मण जाति विशेष के पास ही था। वे लोग जैसा चाहते वैसा मनमानी दक्षिणा लेकर करते थे। इससे तो नित्यप्रति प्रत्येक घर में प्रातः सांयकाल यज्ञ नहीं हो सकता था किन्तु यज्ञ करना तो नित्यप्रति ही चाहिये।
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