बिश्नोई समाज का उन्नीसवां नियम (जीव दया) भावार्थ सहित
जीव दया पालणी : गुरु जाम्भोजी के 29 नियम
जीव दया पालणी : जीवों पर दया करते हुए उनका पालन-पोषण करें। सभी जीव अपने-अपने कर्मानुसार जीना चाहते हैं इसीलिए उनके जीवनमें हमें सहयोग देना चाहिए न कि उनके जीवन को समाप्त करके स्वकीय उदरपूर्ति करना ठीक है। जीओ और जीने दो यह एक सिद्धांत किसी हद तक ठीकहै किन्तु जीव दया पालनी के मुकाबले में काफी बौना पड़ जाता है।
स्वयं भी जीवें और दूसरे को मारें मत इससे आप किसी को मारते हुए को छूड़ा नहीं सकोगे और न ही पालन-पोषण ही कर सकोगे किन्तु जीव दया पालनी में तो न आप स्वयं ही किसी को मारेंगे और न ही किसी को मारने देंगे। इसीलिए यह सिद्धांत गुरूत्तर है। इसी सिद्धांत के पालन करने की जम्भेश्वर महाराज ने आज्ञा दी थी। उनके शिष्य बिश्नोई पालन करते भी आए हैं तथा अद्यपर्यंत कर रहे हैं।
जीव दया पालणी नियम के बदौलत आज भी बिश्नोईयों के गांव में हरिण आदि वन्य जीव निर्भय से विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। ऐसा क्यों न हो बिश्नोई जन अपने प्राणों का बलिदान देकर भी शिकारियों से वन्य जीवों की रक्षा करते हैं। ऐसा एक नहीं अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने अपने प्राणोंत्सर्ग वन्य जीवों को बचाते समय किये है। प्राचीन समय से ही ताम्र-पत्र राजाओं ने लिखकर दिये थे। तथा अब भी सरकार को इस नियम पालन करने के लिए मजबूर किया है।
।। अहिंसा परमो धर्म:।। अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है और हिंसा ही सर्वअधर्म पाप है। आप किसी को जीवन दे नहीं सकते, तो फिर लेने का क्या अधिकार है। जीव हिंसा अनाधिकार चेष्टा है। शब्दों में अनेक जगहों पर जीव हिंसा का खंडन किया है ।
सूल चूभीजै कर्क दुहेलो तो है, है जायो जीव त घाई।।
तथा आधुनिकयुग के बुद्धिमान लोग भी जीव हिंसा का विरोध करते हैं। इनसे होने वाले पाप को न भी मानें तो भी शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक कष्ट रोग आदि तो अवश्य ही मांसाहारी को हो जाते हैं। इसीलिए सदा जीवों की रक्षा करते हुए उनका पालन- पोषण करना चाहिए।
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