29 नियम बिश्नोई : 18 वां नियम - विष्णु का जप करें
बिश्नोई समाज का 18वां नियम (भजन विष्णु) भावार्थ सहित
हम अहंकार को समर्पण करके आनंद विसर्जन नहीं हो जाता है तब तक न तो हम सेवा ही कर सकते, न ही नाम, जप, यज्ञ, संध्यादिक ही कर सकते, यदि कुछ किया भी जाता है तो वह केवल दिखावा ही होगा वास्तविकता से बहुत दूर होगा। अनेकानेक संतों ने नाम जप के संबंध में अपनी भिन्न-भिन्न राय प्रकट की है। किसी ने राम-नाम का जप बतलाया है तो किसी ने कृष्ण या शिव या अन्य कुछ और ही बतलाया है किन्तु गुरु जम्भेश्वर जी ने इन्हीं परम्परागत लीक से हटकर विष्णु-विष्णु यही जप बतलाया है क्योंकि सभी लोग एकमत से स्वीकार करते हैं।
किस गुण साकार चाहे राम हो कृष्ण हो या शिव हो ये सभी अवतार विष्णु के ही हैं। इन्हीं सभी का आदि मूल पुरुष विष्णु परमात्मा ही है इसीलिए एक विष्णु का जप स्मरण होने से सभी अवतारों का स्मरण हो जाता है मूल में पानी सिंचने से डालियां पत्ते आदि तो सभी हरे- भरे हो जाते हैं। किन्तु डालियां पत्ते आदि सींचोगे तो मूल हरा-भरा नहीं हो सकेगा।
सभी अवतारों का समन्वय एक विष्णु में ही हो सकता है इसीलिए विष्णु जप का ही आदेश दिया है जिससे एक का जप करने से सभी के जप का फल मिल जाता है।


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