अमावस्या का व्रत रखना : 29‌ नियम बिश्नोई समाज

अमावस्या का व्रत रखना : 29‌ नियम बिश्नोई समाज

बिश्नोई समाज का सत्रहवां  नियम (अमावस्या का व्रत) भावार्थ सहित || Explaintion of The Seventeenth rule of Bishnoi society

बिश्नोई समाज का मासिक अवकाश : अमावस्या


अमावस्या को व्रत करना : निराहार रहकर उपवासकरना चाहिए। उप= समीप, वास= आवास अर्थात परमात्मा के समीप रहना चाहिए। अमावस्या के दिन ऐसे ही कर्म करने चाहिए जो परमात्मा के पास में ही बिठाने वाले हों, सांसारिक खेती-बाड़ी व्यापार आदि कर्तव्य तो दूर हटाते हैं और संध्या, हवन, सत्संग परमात्मा का स्मरण ध्यानादि कर्म परमात्मा के पास बिठाते हैं।
 महीने में एक दिन उपवास करना चाहिए और वह दिन अमावस्या का ही श्रेष्ठ माना है क्योंकि सूर्य और चन्द्र्मा ये दोनों शक्तिशाली ग्रह अमावस्या के दिन एक राशि में आ जाते हैं। तब तक दोनों एक राशि में रहते हैैं। तब तक रहते है तब तक ही अमावस्या रहती है। चन्द्रमा सूर्य के सामने निस्तेज हो जाता है अर्थात चन्द्र की किरणें नष्ट प्रायः हो जाती हैं। संसार में भयंकर अंधकार छा जाता है।
चन्द्रमा ही सर्व औषधियों में रस देने वाला है जब चन्द्रमा ही पूर्ण प्रकाशक नहीं हो सकेगा तो औषधि भी निस्तेज हो जायेगी। ऐसा निस्तेज हुआ अन्न, बल, वीर्य, बुद्धि आदि को मलीन करने वाला ही होगा। इसीलिए अमावस्या को अन्न खाना निषेध किया गया है और व्रत का विधान किया गया है।
एकादशी या सोम, रवि आदि तिथियां तो अति शीघ्र सप्ताह में एक बार या महीनों में कई बार आ जाते हैं। साधारण किसान लोग परिश्रम करने वाले इतना कहां कर पाते हैं। ये सभी व्रत होना असंभव है किन्तु अमावस्या तो महीनें में एक बार ही आती है। सभी कार्यों को छोड़कर तीस दिनों में एक दिन तो पूर्णतया परमात्मा के नाम पर समर्पण कर सकते हो, इसमें सुविधा भी है तथा सुलभता भी है।
वेदों में भी कहा है- ।दर्शपौर्णमास्याया यजेत्। अर्थात अमावस्या और पूर्णमासी को निश्चित ही यजन करें। वेदों में एकादशी या अन्य व्रतों उपवासों का तो कोई वर्णन ही नहीं आया है। व्रत करने से आध्यात्मिक लाभ तो होगा ही, साथ में भौतिक लाभ भी होगा। हम लोग दिन रात समय बिना समय भूखें हो या न हों, खाते ही रहते हैं। शरीरस्थ अग्नि को ज्यादा भोजन डाल कर मंद कर देते हैं। वह पद अग्नि भोजन को पूर्णतया पचा नहीं सकती, इसलिए अनेकानेक बीमारियाँ बढ़ जाती हैं, फिर डॉक्टरों के पास चक्कर लगाना पड़ता है।
इन समस्याओं का समाधान भी व्रत करने से हो जाता है और यदि रोज-रोज नए-नए व्रत करोगे तो पेट में भूखा रहते-रहते अग्नि स्वयं बुझ जायेगी। फिर भोजन डालने से भी प्रज्वलित नहीं हो सकेगी और यदि महीनें में एक बार ही अमावस्या का व्रत करते हैं तो स्वास्थ्य का संतुलन ठीक से चल सकेगा। यह ही  अमावस्या व्रत का फल है।
वेदों में अमावस्या का महत्व बताया है। उसके पश्चात किसी संत महापुरुष ने अमावस्या व्रत करना नहीं बदलाया। प्रथम बार जम्भदेव जी ने ही कहा है कि अमावस्या का व्रत करो। इसमें बहुत बड़ा रहस्य छुपा हुआ है। यह एक पृथक से अन्वेषण का विषय है। अमावस्या के दिन जब तक सूर्य चन्द्र एक राशि में रहें, तब तक कोई भी सांसारिक कार्य जैसे हल चलाना, कृषि चलाना, दाँती, गडाँसी, कटाई, लुनाई, जोताई आदि तथा इसी प्रकार से गृहकार्य भी नहीं करना चाहिए। उस दिन तो केवल परमात्मा का भजन ही करना चाहिए। अमावस्या व्रत का फल भी शास्त्रों ने बहुत ऊँचा बतालाया है।



साभार: जम्भसागर
लेखक: आचार्य कृष्णानन्द जी
प्रकाशक: जाम्भाणी साहित्य अकादमी 



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