जल, दूध और ईंधण का छानना : 29 Rules of Bishnoi Community

बिश्नोई समाज के 29 नियम :  दसवां नियम (जल, दूध और ईंधण का छानना) भावार्थ सहित 


जल, दूध और ईंधण का छानना : 29 Rules of Bishnoi Community

जल, दूध और ईंधण का छानना : जल, दूध को तो छान करके पीना चाहिए और लकड़ी, उपले आदि को झाङ करके जलाने चाहिए, यही उनका छानना है। क्योंकि देखा गया है कि लकड़ी आदि ईंधन में छोटे-छोटे कीड़े दीमक आदि इकठ्ठे हो जाते हैं। अगर ईंधन को झाङ कर काम में नहीं लेंगे तो वे सभी लकड़ी के साथ ही जल कर भस्म हो जायेंगे। उन असंख्य कीड़ों को मारने का पाप आप पर अवश्य ही लगेगा। थोड़ी-सी असावधानी से बहुत बड़े अपराध से बच जाते हैं।
इन कीड़ों की अग्नि में जलाने से तो आपका कोई स्वार्थ तो सिद्ध नहीं होता है किन्तु यह सभी कुछ असावधानी के कारण ही हो जाता है। इसी प्रकार जल में भी छोटे-छोटे जल के जीव रहते हैं, उस जल को यदि हम वस्त्र से छान करके नहीं पीयेंगे तो वे सभी कीड़े पेट में चले जायेगें। वे कीड़े  तो आपके द्वारा मृत्यु को प्राप्त होंगे ही, साथ में अनेक प्रकार की बीमारियाँ भी पैदा हो जायेंगी उनसे आपको जूझना पड़ेगा। इसलिए कहा है-
"पानी पी तू छान कर निर्मल बाणी बोल, इन दोनों का वेद में नहीं मोल कछु तोल"
इसी प्रकार से दूध भी छान करके ही कार्य में लेना चाहिए क्योंकि उसमें भी कभी-कभी गऊ भैंस आदि के रोयें आदि अंदर गिर जाते हैं।


साभार: जम्भसागर
लेखक: आचार्य कृष्णानन्द जी
प्रकाशक: जाम्भाणी साहित्य अकादमी 


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