वाणी विचार कर बोलना : 29 नियम

वाणी विचार कर बोलना : 29 नियम


बिश्नोई धर्म नियम :ग्यारहवां नियम (बांणी) भावार्थ सहित 


वाणी विचार कर बोलना मुख से उच्चरित होने वाले शब्द को भी छानकर अर्थात् सत्य, प्रिय हितकर बोलना चाहिए।

"सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रुयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्म सनातनः"
 सत्य बोलना चाहिए, साथ में प्रिय भी होना चाहिए। अप्रिय यदि सत्य है तो भी नहीं बोलना चाहिए और यदि प्रिय शब्द है  किन्तु झूठा है तो भी नहीं बोलना चाहिए यही सनातन धर्म है। 
"सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप, जांके हृदय सांच है ताके हृदय आप" तथा यही बात गुरु जम्भेश्वर जी ने कही है- 
"सुवचन बोल सदा सुहलाली" 
अच्छे वचनों को बोलोगे तो सदा खुशहाली रहेगी। "वाणी एक अमोल है जे कोई बोले जान, हिये तराजू तोल कर तब मुख बाहर आन" तथा च - "क: परदेश प्रिय वादीनाम्" प्रिय बोलने वालों के लिए परदेश क्या होता है। सभी इनके अपने ही होते हैं। 
जगत में हम देखते हैं कि सत्य पर ही हिदायतें देखे गये है। सत्य ही परमात्मा है, सत्य व्यवहार से ही परमात्मा तत्व की प्राप्ति तथा लौकिक यश, प्रतिष्ठा, नुखी, यशस्वी जीवन जीया जा सकता है। इसलिए सभी को सत्य का पालन करते हुए जीवन कला सीखनी चाहिए। ऐसी ही जम्भेश्वर जी की इस नियम द्वारा आज्ञा है।  
लोक व्यवहार में हम एक-दूसरे का सामान्यवार्ता करते हुए सुनते हैं तो वे लोग गाली द्वारा ही शब्द बोलते हैं जिससे आपस में वैमनस्य बैर विरोध लड़ाई-झगड़े देखे गये हैं। यदि उसी वाणी को ही मधुर हितकर प्रेमभाव से बोला जाये तो आनंद का लहर दौड़ जाती है। यह वाणी सत्य सनातन है देव मानव सभी लोग सुनते है अच्छी वाणी से सभी लोग प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।




साभार: जम्भसागर
लेखक: आचार्य कृष्णानन्द जी
प्रकाशक: जाम्भाणी साहित्य अकादमी 


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