बिश्नोई समाज के 29 नियम : ( अमल का प्रयोग न करें ) भावार्थ सहित

अमल न खाएं : 29 नियम बिश्नोई

बिश्नोई समाज के 29 नियम : ( अमल का प्रयोग न करें ) भावार्थ सहित || 


अमल न खाएं: अफीम नहीं खाना चाहिए। अफीम एक भयंकर नशीला पदार्थ है इसके वशीभूत मानव जल्दी ही हो जाता है। दो-चार दिन ही लगातार खाते रहने से फिर कभी भी खाये बिना नहीं रह सकता है। शरीर के अंग-प्रत्यंग में अतिशीघ्रता से अपना असर जमा लेती है। जैसा अमल स्वयं काले रंग का होता है,वैसा ही खाने वाले का बना देती है। दिनोदिन इससे शरीर कमजोर होता चला जाता है और अफीम की पकड़ मजबूत होती चली जाती है। अफीम खाने वाले के सभी नियम धर्म शुभ कर्म छूट जाते हैं। अफीम मनुष्य को शारीरिक रूप से कमजोर करने साथ आर्थिक संकट में भी डाल देता है। इसमें यदि देखा जाए तो अवगुण तो असंख्य नजर आएँगे किन्तु गुण एक भी नहीं है।

मानव जब धर्म नियम की मर्यादा एक बार भी भूलकर तोङ देता है तो फिर इस प्रकार की बरबादी में फँस जाता है , फिर निकलना मुश्किल हो जाता है। इसलिए कभी भी भूलकर भी अफीम नहीं खाना चाहिए और न ही छोटे बच्चों को खिलाकर अफीम खाने की आदत ही डालनी चाहिए। किसी कवि ने अफीम खाने वाले की धर्मपत्नी के दुःख दर्द को कविता में कितना सुंदर साकार किया है-- कोसत हो उस दोस्त को,जिन पोसत पीव न पीय को सिखायो। टूटी सी खाट पै ऐसो परो, मानो सासनै पूत को आजहि जायो। कर्म विकर्म भए पिय के सब, पोसत पीकर दुष्ट कहायो। बल बीरज नाश भया सगरो बपु, अंत समय पिय को इन गायो।

अफीम खाने वाला जीते जी ही इस दिव्य शरीर को नरकमय बना लेता है। मृत्यु पर भी वह शुभ कर्म न कर सकने गए कारण नरक में ही पड़ता है। इसलिए सभी को सचेत रहकर इस भयंकर कोढ से सदा ही अपनी रक्षा करनी चाहिए।


साभार: जम्भसागर
लेखक: आचार्य कृष्णानन्द जी
प्रकाशक: जाम्भाणी साहित्य अकादमी 


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