शील व्रत का पालन करना: बिश्नोई पंथ
Bishnoi 29 Rules : चोथा नियम (शील व्रत का पालन करना) भावार्थ सहित
शील व्रत का पालन करना: शील शब्द के प्रसंगानुसार कई अर्थ हो सकते हैं किन्तु यहां 29 नियम में जो इस शील शब्द का प्रयोग किया है इसका अर्थ है कि स्त्री के लिए पतिव्रता धर्म का पालन करना तथा पुरुष के लिए एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करना।
पति-पत्नी में तथा संसार की मर्यादा को बांधने वाला एक यही शीलधर्म है। इस शील धर्म से ही आपसी पिता पुत्रादि मर्यादायें सीमायें जुड़ती है। यदि यह शील धर्म ही खण्डित हो जायेगा तो कौन किसका पिता कौन किसका भाई बहिन होगा तथा कौन किसके पालन पोषण का भार अपने ऊपर लेगा।
पारिवारिक स्नेह कैसे जुड़ सकेगा, उसके बिना तो समाज ही बिखर जायेगा। पति-पत्नी के बीच के मधुर सम्बन्ध को जोड़ने वाला शील ही होता है जिससे परिवार समाज देश मर्यादित होकर चलता है तथा यह शील व्रत ही मानवता तथा पशुता में भेद करता है। इसी भेद से ही मानव पशुता से ऊपर उठकर अपनी उन्नति में अग्रसर होता है।
हिन्दू समाज ही नहीं सम्पूर्ण मानव के लिए यह धर्म पालन करना परमावश्यक है। जहां पर भी शील व्रत खण्डित हुआ है वहीं पर पारिवारिक जीवन नरकमय बन गया है तथा कहीं-कहीं पर सम्बन्ध टूट भी जाते हैं। एक बार शील टूट गया तो फिर दुबारा कभी भी जुड़ता नहीं है। इसीलिए सुख शांति चाहने वाले सभी सज्जनों के लिए शीलव्रत पालनीय है।
FAQ: शील व्रत के संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न?
Q. 1 शील व्रत का अर्थ क्या है?
उत्तर: शील व्रत का अर्थ: स्त्री के लिए पतिव्रता धर्म का पालन करना तथा पुरुष के लिए एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करना।
साभार: जम्भसागर
लेखक: आचार्य कृष्णानन्द जी
प्रकाशक: जाम्भाणी साहित्य अकादमी
शील व्रत का पालन करना: शील शब्द के प्रसंगानुसार कई अर्थ हो सकते हैं किन्तु यहां 29 नियम में जो इस शील शब्द का प्रयोग किया है इसका अर्थ है कि स्त्री के लिए पतिव्रता धर्म का पालन करना तथा पुरुष के लिए एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करना।
पति-पत्नी में तथा संसार की मर्यादा को बांधने वाला एक यही शीलधर्म है। इस शील धर्म से ही आपसी पिता पुत्रादि मर्यादायें सीमायें जुड़ती है। यदि यह शील धर्म ही खण्डित हो जायेगा तो कौन किसका पिता कौन किसका भाई बहिन होगा तथा कौन किसके पालन पोषण का भार अपने ऊपर लेगा।
पारिवारिक स्नेह कैसे जुड़ सकेगा, उसके बिना तो समाज ही बिखर जायेगा। पति-पत्नी के बीच के मधुर सम्बन्ध को जोड़ने वाला शील ही होता है जिससे परिवार समाज देश मर्यादित होकर चलता है तथा यह शील व्रत ही मानवता तथा पशुता में भेद करता है। इसी भेद से ही मानव पशुता से ऊपर उठकर अपनी उन्नति में अग्रसर होता है।
हिन्दू समाज ही नहीं सम्पूर्ण मानव के लिए यह धर्म पालन करना परमावश्यक है। जहां पर भी शील व्रत खण्डित हुआ है वहीं पर पारिवारिक जीवन नरकमय बन गया है तथा कहीं-कहीं पर सम्बन्ध टूट भी जाते हैं। एक बार शील टूट गया तो फिर दुबारा कभी भी जुड़ता नहीं है। इसीलिए सुख शांति चाहने वाले सभी सज्जनों के लिए शीलव्रत पालनीय है।
एक टिप्पणी भेजें
कृपया टिप्पणी के माध्यम से अपनी अमूल्य राय से हमें अवगत करायें. जिससे हमें आगे लिखने का साहस प्रदान हो.
धन्यवाद!
Join Us On YouTube