पांच दिन का रजस्वला रखना : 29 नियम | Bishnoism.Org

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बिश्नोई समाज के 29 नियम : दूसरा नियम भावार्थ सहित (पांच दिन का रजस्वला रखना)


पांच दिन का रजस्वला रखनापांच दिन के मासिक धर्म में आ जाने पर युवती को गृहकार्य से पृथक रहना चाहिये। उन पांच दिनों में वह अपवित्र दशा में होती है। उस समय न तो उसे घर के किसी कार्य में भाग लेना चाहिये, कम से कम भोजन जल को कदापि नहीं छूना चाहिये और न ही रजस्वला स्त्री को ही छूना चाहिये, वह अस्पर्शा होती है।

ऐसी दशा में उसका शरीर कच्चा हो जाता है, जिससे कई प्रकार के दोषों से दूषित हो जाती है। अनेक रोगों से ग्रसित भी हो सकती है। उसके द्वारा बनाया हुआ भोजन करने से भोजनकर्ता दूषित हो जाता है, वह भी रोगी हो सकता है।

इसीलिए अन्य कार्य न करते हुए अपने पति का ही स्मरण करें या फिर देवताओं का या परमात्मा का ही स्मरण करें क्योंकि दृष्टि दोष भी लग जाता है ‘जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि’ जैसी दृष्टि पड़ती है संतान भी वैसी ही हो सकती है। वरसिंग वणियाल के प्रसंग में इस बात की पुष्टि होती है। तथा जम्भसार की कथाओं में यह भी प्रमाण मिलता है कि एक रजस्वला स्त्री के हाथ का जल पीने से और उसके शरीर की छाया पड़ने से 350 क्षत्रिय शूरवीर भूत-प्रेतों की योनी में चले गये थे। इसीलिये जीवन में मन बुद्धि का बहुत ही महत्व होता है, उन्हें शुद्ध परम पवित्र रखना परमावश्यक है और वे खाने-पीने से ही अपवित्र होते हैं और अपवित्र दशा में तो यह शरीर बैठ जायेगा या फिर उल्टे कर्म करके नष्टता को प्राप्त हो जायेगा। इससे बचने के लिए इस धर्म का पालन करना माता और बहनों का परम कर्तव्य है तथा पुरुषों को भी इस नियम का पालन करवाने में पूरा सहयोग देना चाहियेे।

गाड़ी एक चक्र से नहीं चलती। दोनों बराबर घूमेेंगे, समझौता रखेंगे तभी यह गृहस्थी की गाड़ी चल सकेगी। भावी पीढ़ी निर्माण में आपका बहुत बड़ा सहयोग हो सकता है। आप अपनी संतान को कैसी देखना चाहते हैं यदि अच्छी संतान अच्छा परिवार तथा देश देखना चाहते हैं तो इस नियम का अवश्य ही पालन करें तथा करवायें। पांचवे दिन सभी कपड़े धोकर शुद्ध पवित्र हुआ जाता है, उसके बाद ही गृहकार्य तथा सांसारिक व्यवहार करना चाहिये। यदि आप पुत्र की प्राप्ति चाहते हैं तो छठे, आठवें, दसवें, बारहवें, चवदहवें दिन और यदि पुत्री चाहते हैं तो इनसे विपरीत दिनों में व्यवहार कर सकते हें, ऐसी शास्त्रों की विधि है।



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